ماہنامہ الفاران
तहकीक़ के बग़ैर जका़त की अदाइगी माल में बे बरकती का सबब।
मौलाना कबीरुद्दीन फारान मज़ाहिरी नाज़िम मदरसा कादरिया मिस्सरवाला हि0प्र0
ज़कात अगर सही और ईमानदाराना तरीके़ से अदा हो तो मिल्लत में कोई गरीब और तंगदस्त न रहेगा इसी तरह अगर कुरआन व हदीस की तालीम की अहमियत और ज़रुरत को मुसलमान सही तौर पर महसूस कर लें तो हर तालीमी इदारा इतमिनान के साथ अपने तालीमी निज़ाम और दावत व तबलीग की ज़िम्मेदारियों को बहुस्ने खूबी अंजाम दे सकेगा। हज़रत मुहम्मद सल0 ने फरमाया कि अल्लाह ने ज़कात की तक़सीम को नबी या किसी की मर्जी़ पर नहीं छोडा बल्कि बज़ाते खुद उसके मसारिफ मुतअ़य्यन कर दी हैं जो आठ हैं। इनकी तफसीलात आप अपने इलाके के हज़राते मुफतियाने कराम से मालूम कर लें।
हज़रत शेख अब्दुल का़दिर जीलानी का बयान है कि हज़रत मुहम्मद ने फरमाया अपना खाना परहेज़गारों को खिलाया करो और अपना लिबास ईमान वालों को दिया करो जब तूने अपना खाना किसी परहेज़गार को खिलाया और उसके दुनियावी उमूर में उसका मुआविन बना तो जो कुछ वह अमल करेगा उसमें तू भी शरीक हो गया और उसके अजर में से कुछ भी कमी नहीं होगी क्योंकि तूने उसके मक़सूद यानी इबादत पूरी करने में उसकी मदद की और उसके फिक्रे मआ़श के बोझ को उठा लिया और उसका पेट भरने की वजह से उसके कदम हक़तअ़ाला की तरफ बढ़वाऐ और जब तूने अपना खाना रियाकार, नाफरमान मुनाफिक़ को खिलाया और उसके दुनियावी मुआ़मलात में उसकी मदद की तो जो कुछ वह बद अ़ामालियां करेगा उसमें तूभी शरीक हो गया और उसकी सज़ा में कुछ भी कमी न होगी क्योंकि उसको रोटी खिलाकर हकतआ़ला की नाफरमानी में तू उसका मददगार बना है पस उसका असरे बद तेरी तरफ भी लौटेगा (अल्फत्हुर्रबानी पेज न0 250,251)
हज़रत इमाम ग़िज़ाली रह0 ने अपनी किताब अहयाउल उलूम में लिखा है कि हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मुबारक हमेंशा अपनी ज़कात व खैरात अहले इल्म पर ही खर्च करते थे और फरमाते थे कि मैं दरजाऐ नुबुव्वत के बाद उलमा के दर्जे से अफज़ल किसी का मर्तबा नहीं देखता हूँ अगर अहले इल्म तंग दस्त हो गए तो दीनी खिदमत न हो सकेगी नतीजतन दीनी उमूर में नुक़्स आ जाएगा लिहाज़ा इल्मी खिदमत के लिए उनको फारिग़ और बेफिक्र कर देना सबसे बेहतर है।
अहयाउल उलूम में है कि ज़कात वगैरह देने के लिए एैसे दीनदार लोगों को तलाश करंे जो दुनिया की तमा व तल्ब छोड कर आखिरत की तिजारत में मशगुल हों हज़रत मुहम्मद का इरशाद है कि तुम पाक गिज़ा खाओ और पाक आदम ज़ात को खिलाओ। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है कि खैर करने वालों को ही अपना खाना खिलाओ इसलिए कि वह लोग अल्लाह की तरफ मुतवज्जह हैं जब वह लोग तंग दस्त होते हैं तो उनकी तवज्जोह हट जाती है लिहाज़ा एक शख्स को अल्लाह की तरफ मुतवज्जह कर देना यह बहुत अफज़ल है एैसे हज़ारों शख्स को देने से जिनकी तवज्जोह दुनिया ही की तरफ होती है परहेज़गारों में से भी एैसे अहले इल्म को खास करदें जो अपने इल्म से अल्लाह को राज़ी करने के लिए लोगों को नफा पहुंचा रहे हैं और मज़हबे इस्लाम की पुख्तगी और उलूमे दीनिया को फैलाने और तब्लीगे़ दीन में लगे हुए हैं क्योंकि इल्म तमाम इबादतों से अफज़ल इबादत है।
हज़रत इमाम रब्बानी शैख़ अहमद सरहन्दी ने फरमाया है कि - वाकिया यह है कि उलूमें दीनियां के तलबा को मुकद्दम रखने में शरीअत की तरवीज और इशाअत है क्योंकि हामिलाने शरीअत यही तलबा हैं। उन्हीं के ज़रिये उम्मते मुहम्मदिया ज़ुहूर फरमां है कयामत के दिन शरीअत ही की पूछ होगी।
फज़ाइले अल इल्म वल उलमां में हदीस मन्कूल है कि जिसने किसी तालिबे इल्म को एक दिर्हम दिया तो गोया उसने राहे खुदा में जब्ले ओहद के मिस्ल बेहतरीन सोना खै़रात किया।
किताब मजालिसुल अबरार में लिखा है कि ज़कात परहेज़गारो को दो कि उस इमदाद से इमदाद फिल इबादत हासिल करना है तो उसके देने वाले भी उनकी इबादत के सवाब में शरीक बन जाऐंगे या ज़कात आलिमे दीन को दो कि आलिम की खिदमत करना उसके इल्म में इमदाद करना है और इल्म दीन अफज़लुल इबादत और अशरफ है यहां तक कि अगले बाज़ बुज़रुग अहले इल्म को ही देते थे और फरमाते थे कि मक़ामे नबुव्वत के बाद उलमा के मर्तबा से बडा रुत्बा किसी का नहीं।
ज़्ाकात इस्लाम का अहम रुक्न और फरीज़ा है इसलिए उसकी अदाइगी निहायत फिक्र व एहतियात से मसाइल की रोशनी में करना चाहिए जिस तरह दूसरे फराइज़ में वक्त जगह और महीने की रिआयत होती है इसी तरह ज़कात की अदाइगी के लिए अपनी आमदनी की तमाम शकलों और मस्रफ की सही जगह को तलाश करना ज़रुरी है।
अमीरे तब्लीग़ हज़रत मौलान मुहम्मद इलियास साहिब का फरमान है ज़कात देने वालांे पर उनकी तलाश ज़रुरी है जिन पर खर्च की जाए जैसे नमाज़ पढ़ने वाले पर पाक पानी का तलाश करना ज़रुरी है। आज कल माल वाले अक्सर बिला तहकीक़ पेशावर मांगने वालों को ज़कात देकर समझ लेते हैं कि ज़कात अदा हो गई यही वजह है कि ज़कात अदा करने के बाद माल में बरकत नहीं होती हालांकि अल्लाह का वादा है कि ज़कात की अदाइगी से माल में बरकत होती है बस जो लोग ज़कात अदा करने के बाद भी अपने माल में बरकत न देखें तो उनको समझ लेना चाहिए कि ज़कात सही जगह नहीं दी गई और उन्होंने सही जगह की तलाश नहीं की।
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